शनिवार, 23 दिसंबर 2017

कुछ विशेष दिनों में बाल नहीं कटवाते क्यूं :

कुछ विशेष दिनों में बाल नहीं कटवाते क्यूं :

हमारे दैनिक जीवन से जुडी कई ऐसी बातें हैं जिनकों कब और कैसे करना है इसका निर्देश धर्म शास्त्रों में दिया गया है। 

आज के समय में बहुत से लोग उनकों अंधविश्वास का नाम देते हैं क्योंकि उनका प्रभाव प्रत्यक्षत: देखने को नहीं मिलता लेकिन सच्चाई यही हैं कि चीन काल में ऋषि-मुनियों ने जो परंपराएं बनाई हैंअप्रत्यक्ष रूप से इन मान्यताओं का हम पर एक गहरा प्रभाव पडता है।

शायद इसीलिए बहुत से लोग आज भी इन परम्पराओं को खूब महत्त्व देते हैं। उन्हीं में से एक परम्परा है दाढी और बाल कटवाने की। 

आज भी घर के बड़े और बुजुर्गों द्वारा बताया जाता है कि शनिवारमंगलवार और गुरुवार के दिन बाल नहीं काटवाने चाहिए। ऐसा माना जाता है कि सप्ताह के कुछ ऐसे दिन हैं जब ग्रहों से कुछ विशेष प्रकार की किरणें निकलती हैं। 

ये किरणे हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। मानव एक मस्तिष्क प्रधान जीव है। हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण भाग मस्तिष्क ही है। मस्तिष्क सिर में पाया जाता है। 

सिर का मध्य भाग अति संवेदनशील और बहुत ही कोमल होता है। जिसकी सुरक्षा बालों से होती है यही कारण है कि प्रकृति ने हमारे सिर को बालों से आच्छादित किया है। 

यदि शनिवार, मंगलवार और गुरुवार को निकलने वाली विशेष प्रकार की किरणों वाली बात सही है तो उस दिन बाल कटवाने से इन किरणों का सीधा प्रभाव हमारे सिर पर पडेगा। 

फलस्वरूप हमारा मस्तिष्क भी प्रभावित होगा। इसी वजह से इन दिनों में बालों को न कटवाने की बात कही गई है।

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि मंगलवार को बाल कटवाने से हमारी आयु आठ माह कम हो जाती है। 

ज्योतिष के अनुसार मंगलवार का दिन मंगल ग्रह का दिन होता है। शरीर में मंगल का निवास हमारे रक्त में रहता है और रक्त से बालों की उत्पत्ति होती है। इस दिन बाल कटवाने से रक्त विकार होने की सम्भावना बढ जाती है। गुरुवार धन के कारक बृहस्पति का दिन माना गया हैबृहस्पति संतान और ज्ञान का भी कारक ग्रह है। 

साथ ही कुछ विद्वान गुरुवार को देवी लक्ष्मी का दिन भी मानते हैं अत: इस दिन बाल कटवाने से धन की कमी, संतान कष्ट व ज्ञान क्षीणता होने की संभावनाएं रहती हैं। शनिवार शनि ग्रह का दिन है। 

शनि आयु या मृत्यु देने वाला ग्रह है और शनि का संबंध हमारी त्वचा से भी होता है। अत: शनिवार को बाल कटवाने से उपरोक्त बातों पर दुष्प्रभाव पडता है। 

इसीलिए इसदिन बाल कटवाने से आयु में सात माह की कमी हो जाने की बात कही गई है। शायद इनसे बचने के लिए ही शनिवार, मंगलवार और गुरुवार के दिन बाल न कटवाने की बात कही जाती है। 

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दीपावली पर व्यापार की उन्नति के लिए उपाय:

दीपावली पर व्यापार की उन्नति के लिए उपाय:

दीपावली पर महालक्ष्मी जी की पूजा के समय मां को एक इत्र की शीशी चढ़ाएं। उसमें से एक फुलेल लेकर मां को अर्पित करें। फिर पूजा के पश्चात् उसी शीशी में से थोड़ा इत्र स्वयं को लगा लें। इसके बाद रोजाना इसी इत्र में से थोड़ा-सा लगा कर कार्यस्थल पर जाएं तो रोजगार में वृद्धि होने लगती है।
श्री यंत्र, कुबेर यंत्र या दक्षिणावर्ती शंख घर के पूजनस्थल पर रखकर नित्य दर्शन व पूजा करें तो चमत्कारी परिणाम आते हैं।

दीपावली के दिन हल्दी की 11 गांठों को पीले कपड़े में रख कर 'ॐ वक्रतुण्डाय हुंमंत्र की 11 माला जाप कर तिजोरी में रख दिया जाए और रोजाना वहां दीया जलाया जाए तो व्यापार की उन्नति होने लगती है।

दीपावली की शाम को एक सुपारी व एक ही तांबे का सिक्का लेकर किसी पीपल के पेड़ के नीचे रख दें, रविवार को उसी पीपल के पेड़ का पत्ता लाकर कार्यस्थल पर गद्दी के नीचे रख देने से ग्राहक बने रहते हैं और धन आने लगता है।

दीपावली के दिन अपने गल्ले के नीचे काली गुंजा के दाने डाल दें और निम्न मंत्र की 5 माला जाप करें तथा रोजाना महालक्ष्मी जी के सामने दीया जलाने से व्यवसाय में होने वाली हानि रूक जाती है

'ॐ ऐं ह्रीं विजय वरदाय देवी ममः

दीपावली की रात में चांदी की ढक्कन वाली डिबिया में नाग केसर व शहद भर कर अपनी तिजोरी या गल्ले में रख दें। अगली दिवाली तक ऐसे ही रहने दें। फिर दीपक जलाकर रोजाना श्री सूक्त का पाठ या विष्णु सहस्रनाम का जाप करें। तिजोरी सारे साल धन से भरी रहेगी।

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तंत्र प्रयोगों के दुष्प्रभाव को समाप्त करने वाला हनुमान मन्त्र

तंत्र प्रयोगों के दुष्प्रभाव को समाप्त करने वाला हनुमान मन्त्र

क्या आप पैसों की तंगी से परेशान हैं? क्या आपको अपनी मेहनत का पूरा फल प्राप्त नहीं हो पाता है? क्या आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है? क्या आपको किसी की बुरी नजर सता रही है? यदि किसी व्यक्ति को भूत-प्रेत आदि से संबंधित कोई परेशानी हो तो यहां हनुमान मन्त्र का एक रामबाण उपाय बताया जा रहा है। जिससे सभी प्रकार की परेशानियां समाप्त हो जाएंगी-


किसी मंगलवार को अपने घर के एकांत कक्ष में चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर हनुमानजी की मूर्ति या तश्वीर की स्थापित करें। उनका विधिवत पूजन करें। इसके बाद निम्न मंत्र का 5 माला जप करें 

मन्त्र :-

ॐ नमो हनुमते रुद्रावतारायपर-यंत्र-मंत्र-तंत्र-त्राटक-नाशकायसर्व-ज्वरच्छेदकाय, सर्व-व्याधि-निकृन्तकायसर्व-भय-प्रशमनाय, सर्वदुष्ट-मुख-स्तम्भनायदेव-दानव-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-दुष्टग्रह-बंधाय,सर्व-कार्य-सिद्धि-प्रदाय रामदूताय स्वाहा।


इसके बाद प्रतिदिन विधिवत पूजन करें तथा इस मंत्र का जप कम से कम 11 बार अवश्य करें। कुछ ही दिनों में आपके ऊपर किए गए तंत्र प्रयोगों का असर समाप्त हो जाएगा 

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क्यों सात बार राई वारने से उतर जाती हैं नजर

क्यों सात बार राई वारने से उतर जाती हैं नजर ?
मित्रों अक्सर हम सुनते है कि जब किसी को नजर लग जाती है तो उसे कहते हैं कि अपनी मुट्ठी में राई लेकर अपने सिर से सात बार वार कर फेंक दो। क्या राई को सात बार वार देने क्या नजर उतर सकती हैं ? आइये इसके पीछे क्या विज्ञान काम करता हैं समझने का प्रयास करते हैं।

मित्रों अक्सर आप देखते होंगे की राई को जब किसी प्लास्टिक बेग से निकालते हैं तो राई उस प्लाष्टिक बेग से चिपक जाती हैं। वो इसलिये कि राई में चुम्बकीय गुण विद्धमान होता हैं। और राई को बेग से निकालते वक्त घर्षण से उसका चुम्बकीय गुण सक्रीय हो जाता हैं।

अब जब इसे सात बार हमारे शरीर पर से वारा जाता हैं तब इसका संपर्क हमारे शरीर के सात रंग वाले आभामंडल से होता हैं, जिसे हम सुरक्षा चक्र भी कहते हैं। राई के लगातार हमारे आभामंडल से टकराने से इसका चुम्बकीय गुण सक्रीय होकर हमारे शरीर के सातों चक्रों में फैली नकारात्मकता को सोख लेता हैं। सात बार वारने का मतलब हमारे सूक्ष्म शरीर के सातों चक्रों का शुद्धिकरण करना होता हैं। सात बार राई को वारने के बाद उसे घर से कुछ दूर नाली में फेंक दिया जाता हैं।

वैसे आभामंडल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इसके लिए साधारण तौर पर इतना बता देता हूँ कि आभामंडल हमारे शरीर का सुरक्षा चक्र होता हैं। जब ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अच्छी-बुरी दशा चलती हैं तो उसका सबसे पहला प्रभाव हमारे आभामंडल पर ही पड़ता हैं। पर अगर हम किसी अच्छी संगत, अच्छे विचार या किसी ज्ञानी गुरु के संपर्क में हो या किसी भगवान् में हमारी आस्था बहुत मजबूत हो तो ग्रहों के बुरे प्रभाव की रश्मियाँ हमारे उस आभामंडल यानी सुरक्षा चक्र का भेदन करने में कामयाब नही होती। इसलिए जो लोग निरंतर सत्संग करते हैं, सकारात्मक विचारों के संपर्क में रहते हैं ऐसे पुण्यशाली लोगों पर ग्रहों, टोने-टोटके और नजर इत्यादि का बुरा प्रभाव आसानी से नही पड़ता। और न ही कोई नकारात्मकता उनके आभामंडल को भेद पाती हैं।

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दुर्भाग्य दूर करने के लिये

दुर्भाग्य दूर करने के लिये 

आटे का चौमुखा दिया, 4 रुई की बत्ती,सरसों का तेल, 1 नीबू, 7 लाल मिर्च, 7 लड्डू (बूंदी के), 2 लौंग, 2 बड़ी इलायची, केले का पत्ता ! शनिवार को सूर्यास्त के बाद सुनसान चौराहे पर जाकर पत्ते को रख दें और सब सामग्री को भी 1 – 1 करके रख देवे फिर आटे के दीपक में 4 रुई की बत्तियां रखकर तेल डालकर चारो बत्तियो को जलाये व प्रार्थना करें !

जब घर से निकले तब यह प्रार्थना करें -हे दुर्भाग्य, संकट,विपत्ती आप मेरे साथ चलेंऔर दीपक जलाने के बाद यह प्रार्थना करें कि- मैं विदा हो रहा हूँ | आप मेरे साथ न आयें और यही पर रहे !यह बोलकर वापस घर आ जाये , पीछे मुड़कर ना देखे !

भाग्य साथ ही नहीं देता है,बल्कि दुर्भाग्य निरन्तर पीछा करता रहता है ! दुर्भाग्य से बचने के लिए या दुर्भाग्य नाश के लिए यहां एक अनुभूत सरल तांत्रिक उपाय बताया गया हैं ! उपाय लाभकारी है ! इसको बिना शंका के पूर्ण आस्था के साथ करने से दुर्भाग्य का नाश होकर सौभाग्य वृद्धि होती है ! इस उपाय से चारों दिशाओ के रास्ते खुल जाते हैं !

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मोहन तंत्र

मोहन तंत्र प्रयोग:

जिस कर्म के द्वारा किसी स्त्री या पुरुष को अपने प्रति मुग्ध करने का भाव निहित हो, वो मोहनकर्मकहलाता है। मोहन अथवा सम्मोहन यह दोनों प्रायः एक ही भाव को प्रदर्शित करते हैं। मोह को ममत्व, प्रेम, अनुराग, स्नेह, माया और सामीप्य प्राप्त करने की लालसा का कृत्य माना गया है। मोहन कर्म की यही सब प्रतिक्रियाएं होती हैं। निष्ठुर, विरोधी, विरक्त, प्रतिद्वंदी अथवा अन्य किसी को भी अपने अनुकूल, प्रणयी और स्नेही बनाने के लिए मोहन कर्म का प्रयोग किया जाता है। मोहन कर्म के प्रयोगों को सिद्ध करने के लिए पहले निम्नलिखित मंत्र का दस हजार जप करना चाहिए।

।ॐ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि यश्च मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा ।

प्रयोग से पूर्व प्रत्येक तंत्र को पहले उपर्युक्त मंत्र से अभिमंत्रित कर लेना चाहिए। मोहन कर्म के प्रयोग निम्नलिखित है:-

1. तुलसी के सूखे हुए बीज के चूर्ण को सहदेवी के रस में पीसकर ललाट पर तिलक के रूप में लगाएं।

2. असगंध और हरताल को केले के विविध तंत्र प्रयोग रस में अच्छी तरह से पीसकर उसमें गोरोचन मिलाएं तथा मस्तक पर तिलक लगाएं तो देखने वाले मोहित हो जायेंगे।

3. वच, कूट, चंदन और काकड़ सिंगी का चूर्ण बनाकर अपने शरीर तथा वस्त्रों पर धूप देने अथवा इसी चूर्ण का मस्तक पर तिलक लगाने से मनुष्य, पशु, पक्षी जो भी देखेगा मोहित हो जाएगा। इसी प्रकार पान की मूल को घिसकर मस्तक पर उसका तिलक करने से भी देखने वाले मोहित होते हैं।

4. केसर, सिंदूर और गोरोचन इन तीनों को आंवले के रस में पीसकर तिलक करने से लोग मोहित होते हैं।

5. श्वेत वच और सिंदूर पान के रस में पीसकर एवं तिलक लगाकर जिसके भी सामने जाएंगे वो मोहित हो जाएगा।

6. अपामार्ग (जिसे औंगा, मांगरा या लाजा भी कहते हैं) धान की खील और सहदेवी - इन सबको पीसकर उसका तिलक करने से व्यक्ति किसी को भी मोहित कर सकता है।

7. श्वेत दूर्वा और हरताल को पीसकर तिलक करने से मनुष्य तीनों लोकों को मोहित कर लेता है।

8. कपूर और मैनसिल को केले के रस में पीसकर तिलक करने से अभीष्ट स्त्री-पुरुष को मोहित कर सकता है।

9. तंत्र साधक गूलर के पुष्प से कपास के साथ बत्ती बनाए और उसको नवनीत से जलाए। जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल पारे तथा उस काजल को रात्रिकाल में अपनी आंखों में आंज ले। इस काजल के प्रभाव से वो सारे जगत् को मोहित कर लेता है। ऐसा सिद्ध किया हुआ काजल कभी किसी को नहीं देना चाहिए।

10. श्वेत धुंधली के रस में ब्रह्मदंडी की मूल को पीसने के बाद शरीर पर लेप करने से सारा संसार मोहित हो जाता है।

11. बिल्व पत्रों को लाने के बाद उन्हें छाया में सुखा लें। फिर उन्हें पीसकर कपिला गाय के दूध में मिलाकर गोली बना लें। उस गोली को घिसकर तिलक करने से देखने वाला तन, मन और धन से मोहित हो जाएगा।

12. श्वेत मदार की मूल और श्वेत चंदन-इन दोनों को पीसकर उसका शरीर पर लेप करें। इस क्रिया से किसी को भी सहज ही मोहित किया जा सकता है।

13. श्वेत सरसों को विजय (भांग) की पत्ती के साथ पीसकर मस्तक पर लेप करें। अब जिसके सामने भी जाएंगे वो मोहित हो जाएगा।

14. तुलसी के पत्तों को लाकर उन्हें छाया में सुखा लें। फिर उनमें विजया यानी भांग के बीज तथा असगंध को मिलाकर कपिला गाय के दूध में पीस लें। तत्पश्चात उसकी चार-चार माशे की गोलियां बनाकर प्रातः उठकर खाएं। इससे सारा जगत मोहित हुआ प्रतीत होता है।

15. कड़वी तुंबी के बीजों के तेल में कपड़े की बत्ती बनाकर जलाएं और उससे काजल पार कर आंखों में अंजन की भांति लगाएं। अब जिसकी तरफ भी दृष्टि उठाकर देखेगें, वो मोहित हो जाएगा।

16. अनार के पंचांग को पीसकर उसमें श्वेत धुंधली मिलाकर मस्तक पर तिलक लगाएं। इस तिलक के प्रभाव से कोई भी मोहित हो सकता है।

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वीर-वैताल शाबर मंत्र साधना

वीर-वैताल शाबर मंत्र साधना

        अदृश्य शक्ति का प्रवाह क्या आपने कभी विचार किया है कि ब्रह्माण्ड में कितनी अृदश्य शक्तियों का प्रवाह हो रहा है? कई शक्तियां आपको दिखाई नहीं देती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि शक्तियां होती ही नहीं है। वैताल शिव के प्रमुख गण है, जिन्होंने दक्ष राज के यज्ञ का विंध्वस कर शिव सत्ता स्थापित की हर व्यक्ति वैताल साधना सम्पन्न कर अपने चारों और एक सुरक्षा चक्र स्थापित कर सकता है। वैताल साधना ऐसी ही अद्वितीय तंत्र साधना है जिसके पूर्ण होने पर वैताल हर समय सुरक्षा प्रहरी के रुप में साधक के साथ रहता है।

        वैताल भगवान शिव का ही अंश स्वरूप हैं, शिव के गणों में वैताल नाम प्रमुखता से लिया जाता है। अपनी दैवीय शक्तियों के कारण प्राचीन काल से ही भगवान शिव के विशिष्ट गण वैताल की साधना का प्रचलन रहा है।

       इतिहास साक्षी है, कि सांदीपन आश्रम में भगवान श्री कृष्ण ने भी वैताल सिद्धि प्रयोग सम्पन्न किया था, जिसके फलस्वरूप वे महाभारत में अजेय बन सके, और जीवन में अद्वितीय सिद्ध हो सके, हजारों बाणों के बीच भी वे सुरक्षित रह सके। विक्रमादित्य ने भी वैताल सिद्धि प्रयोग कर अपने जीवन के कई प्रश्नों को सुलझा लिया था।

       आगे चलकर गुरु गोरखनाथ और मछिन्दरनाथ तो वैताल साधना के सिद्धतम आचार्य बने और उन्होंने वैताल साधना द्वारा उन्होंने अपने जीवन में साधनात्मक उपलब्धियों को सहज ही प्राप्त कर लिया। महान् तंत्र वेत्ता और गोरख तंत्र के आदि गुरु गोरखनाथ प्रणीत वैताल साधना, इस साधना को आज भी गोरख पंथ प्रमुख रूप से सम्पादित करता है।

वैताल उत्पत्ति
       एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। उस आयोजन में भगवान शिव को उचित मान-सम्मान नहीं दिया गया, इस कारण उनकी पत्नी सती जो राजा दक्ष की पुत्री थीं, व्यथित हो गईं और यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये। इस कारण भगवान शिव अत्यन्त क्रोधित हुए, उनके क्रोध से तीनों लोक थर्राने लगे, पेड़ों से पत्ते झड़ गये, चारों तरफ बिजलियां कड़कने लगीं और समुद्र में तूफान सा आ गया।

       उसी क्रोध के आवेश में भगवान शिव ने अपनी जटा की एक लट को तोड़कर दक्ष के यज्ञ में होम कर दी, फलस्वरूप एक अत्यन्त तेजस्वी पराक्रमी बलवान और साहसी वीर की उत्पत्ति हुई जिसे वैतालशब्द से संबोधित किया गया।

       यज्ञ में से वैताल को प्रकट होते देख सारे देवता और दानव थर थर कांपने लगे, उसकी ज्वालाओं के सामने सारे देवता लोग झुलसने लगे और ऐसा लगने लगा कि यह पराक्रमी यदि चाहे तो पूरे भूमण्डल को एक हाथ से उठा कर समुद्र में फेंक सकता है।

       भगवान शिव की शक्ति से उत्पन्न वैताल को भगवान शिव ने स्वयं आज्ञा दी की जो साधक तुम्हारी साधना कर तुम्हें प्रत्यक्ष प्रकट करें, उसके सामने शांत स्वरूप में उपस्थित होना और जीवन भर उसकी छाया की तरह रक्षा करना, …यही नहीं, अपितु वह जीवन में तुम्हें जो भी आज्ञा दे, जिस प्रकार की भी आज्ञा दे उस आज्ञा का पालन करना ही तुम्हारा कर्त्तव्य होगा।

गोरक्ष संहिता के अनुसार वैताल साधना के निम्न छह लाभ हैं

1. वैताल साधना से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, यह अत्यन्त सौम्य और सरल साधना है। जब वैताल साधना सिद्धि होती है, तो मनुष्य रूप में सरल प्रकृति और शांत रूप में वैताल प्रकट होता है, और जीवन भर दास की तरह साधक के कार्य सम्पन्न करता है।

2. वैताल सिद्धि होने पर वह छाया की तरह अदृश्य रूप से साधक के साथ बना रहता है, और प्रतिपल प्रतिक्षण उसकी रक्षा करता है। प्रकृति, अस्त्र शस्त्र या मनुष्य उसका कुछ भी अहित नहीं कर सकते, किसी भी प्रकार से उसके जीवन में न तो दुर्घटना हो सकती है और न उसकी अकाल मृत्यु ही संभव है।

3. ऐसे साधक के जीवन में शत्रुओं का नामो निशान नहीं रहता, वह कुछ ही क्षणों में अपने शत्रुओं को परास्त करने का साहस रखता है, और उसका जीवन निष्कंटक और निर्भय होता है, लोहे की सीखंचें या कठिन दीवारें भी उसका कुछ भी अनिष्ट नहीं कर सकतीं।

4. वैताल भविष्य सिद्धि सम्पन्न होता है, अतः अपने जीवन या किसी के भी जीवन के भविष्य से सम्बन्धित जो भी प्रश्न पूछा जाता है, उसका तत्काल उत्तर प्रामाणिक रूप से मिल जाता है, ऐसा व्यक्ति सही अर्थों में भविष्य दृष्टा बन जाता है।

5. जो साधक वैताल को सिद्ध कर लेता है, वह वैताल के कन्धों पर बैठ कर अदृश्य हो सकता है, एक स्थान से दूसरे स्थान पर कुछ ही क्षणों में जा सकता है और वापिस आ सकता है, उसके लिए पहाड़, नदियां या समुद्र बाधक नहीं बनते।

ऐसा साधक कठिन से कठिन कार्य को वैताल के माध्यम से सम्पन्न करा लेता है, और चाहे कोई व्यक्ति कितनी ही दूरी पर हो, उसे पलंग सहित उठा कर अपने यहां बुलवा सकता है, और वापिस लौटा सकता है, उसके द्वारा गोपनीय से गोपनीय सामग्री प्राप्त कर सकता है।

6. वैताल सिद्धि प्रयोग सफल होने पर साधक अजेय, साहसी, कर्मठ और अकेला ही हजार पुरुषों के समान कार्य करने वाला व्यक्ति बन जाता है।

        वास्तव में वैताल साधना अत्यन्त सौम्य और सरल साधना है, जो भगवान शिव की साधना करता है वह वैताल साधना भी सम्पन्न कर सकता है। जिस प्रकार से भगवान शिव का सौम्य स्वरूप है, उसी प्रकार से वैताल का भी आकर्षक और सौम्य स्वरूप है। इस साधना को पुरुष या स्त्री सभी सम्पन्न कर सकते हैं।

       यद्यपि यह तांत्रिक साधना है, परन्तु इसमें किसी प्रकार का दोष या वर्जना नहीं है। गायत्री उपासक या देव उपासक, किसी भी वर्ण का कोई भी व्यक्ति इस साधना को सम्पन्न कर अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकता है। सबसे बड़ी बात यह है, कि इस साधना में भयभीत होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है, घर में बैठकर के भी यह साधना सम्पन्न की जा सकती है। साधना सम्पन्न करने के बाद भी साधक के जीवन में किसी प्रकार अन्तर नहीं आता, अपितु उसमें साहस और चेहरे पर तेजस्विता आ जाती है, फलस्वरूप वह जीवन में स्वयं ही अपने अभावों, कष्टों और बाधाओं को दूर कर सकता है।

       आज के युग में वैताल साधना अत्यन्त आवश्यक और महत्वपूर्ण हो गई है, दुर्भाग्य की बात यह है कि अभी तक इस साधना का प्रामाणिक ज्ञान बहुत ही कम लोगों को था, दूसरे साधक वैतालशब्द से ही घबराते थे, परन्तु ऐसी कोई बात नहीं है। जिस प्रकार से साधक लक्ष्मी, विष्णु या शिव आदि की साधना सम्पन्न कर लेते हैं, ठीक उसी प्रकार के सहज भाव से वे वैताल साधना भी सम्पन्न कर सकते हैं।

साधना सामग्री
       इस प्रयोग में न तो कोई पूजा और सिर्फ विशेष सामग्री की आवश्यकता होती है,नाथ संप्रदाय के अनुसार इस प्रयोग में केवल तीन उपकरणों की जरूरत होती है।

1. तांत्रोक्त वीर वैताल यंत्र (जिससे एक पत्ते वाले बेल वृक्ष की जड़ और एक पत्ते वाले पलाश के वृक्ष की जड़ होना ज़रूरी है,जो ताबीज में भरकर सिद्ध किया जाता है)  

2. रुद्र मंत्र आवेशित तांत्रोक्त वैताल रुद्राक्ष माला और 

3.रक्षा कवच (इस कवच में मसन्या उद का प्रयोग होना चाहिए ) ।

       इसके अलावा साधक को अन्य किसी प्रकार की सामग्री जल पात्र या कुंकुम आदि की जरूरत नहीं होती, यह साधना रात्रि को सम्पन्न की जाती है, परन्तु जो साधक न भयभीत हों, और न विचलित हों, वे निश्चिन्त रूप से इस साधना को सम्पन्न कर सकते हैं।


साधना विधान:-
        साधक रात्रि को दस बजे के बाद स्नान कर लें और स्नान करने के बाद अन्य किसी पात्र को छुए नहीं। पहले से ही धोकर सुखाई हुई काली धोती को पहन कर काले आसन पर दक्षिण की ओर मुंह कर घर के किसी कोने में या एकान्त स्थान में बैठ जाएं।

        अपने सामने लकड़ी के एक बाजोट पर शिव परिवार चित्र/विग्रह/शिव यंत्र/शिवलिंग स्थापित कर लें और साथ ही अपने गुरु/गोरक्षनाथ का चित्र भी स्थापित कर दें। वैताल साधना में सफलता हेतु गुरु और शिव जी से आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करें। इस हेतु सर्वप्रथम गुरु और शिव जी का ध्यान करें

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

अब भगवान शिव जी का मन ही मन नीचे लिखे मंत्र से ध्यान करें-

ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम।
पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैव्र्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम॥

एक ताँबे के पात्र या स्टील की थाली में काजल से एक गोला बनाएं और उस गोले में वैताल यंत्र को स्थापित कर दें। यंत्र स्थापन के पश्चात् हाथ जोड़कर वैताल का ध्यान करें।

ध्यान
धूम्र-वर्ण महा-कालं जटा-भारान्वितं यजेत्
त्रि-नेत्र शिव-रूपं च शक्ति-युक्तं निरामपं॥
दिगम्बरं घोर-रूपं नीलांछन-चय-प्रभम्
निर्गुण च गुणाधरं काली-स्थानं पुनः पुनः॥

        ध्यान के उपरान्त साधक वैताल सिद्धि माला से मंत्र की 3 माला मंत्र जप नित्य कम से कम 21 दिनों तक सम्पन्न करें। यह शाबर मंत्र छोटा होते हुए भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है और शाबरी तंत्र में इस मंत्र की अत्यन्त प्रशंसा की हुई है।

शाबर वैताल मंत्र

॥ॐ नमो आदेश गुरुजी को,वैताल तेरी माया से जो चाहे वह होये,तालाब के वीर-वैताल यक्ष बनकर यक्षिणियों संग चले,शिव का भक्त माता का सेवक मेरा कह्यो कारज करे,इतना काम मेरा ना करो तो राजा युधिष्ठिर का गला सूखे,(यहां पर मैं आगे का मंत्र नही लिख रहा हु,क्योके मंत्र गोपनीय होने के कारण अधूरा रखना ही बेहतर है) ॥

         मंत्र जप करते समय किसी प्रकार आलस्य नहीं लायें, शांत भाव से मंत्र जप करते रहें। यदि खिड़की, दरवाजे खड़खड़ाने लगे तो भी अपने स्थान से न उठें। मंत्र जप के पश्चात् बेसन के लड्डुओं का भोग यंत्र के सामने अर्पित कर दें।

       वास्तव में ही यह अत्यन्त गोपनीय प्रयोग है, अतः यह प्रयोग सामान्य व्यक्ति को, निन्दा करने वाले को, तर्क करने वाले दुराचारी को नहीं देना चाहिए और न इसकी विधि समझानी चाहिए । 


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