काक भुशुण्डि से गरुड़ के सात प्रश्न, स्तोत्र : रामचरितमानस
*जो करते हैं सबकी निंदा, उनके गले में पड़ता है चमगादड़ का फंदा*
*काक भुशुण्डि से गरुड़ के सात प्रश्न, स्तोत्र : रामचरितमानस*
जीवन के मोह में समस्त संसार होता है किन्तु हमारे पूर्वजों ने मुक्ति का अंतिम मार्ग मोक्ष बताया है। श्रीमद भगवत गीता में जीवन के सभी कष्टों का निवारण मिलता है तो वहीं राम चरित मानस जीवन मर्म को सार्थकता प्रदान करती है।
जीवन के कई पहलुओं की समस्याओं को बड़ी ही सरल भाषा में स्पष्टीकरण हमें रामायण में प्राप्त होता है। रामायण में एक जगह जहां मोह ग्रसित गरुड़ व काक भुशुण्डी संवाद है वहां मोह ग्रसित गरुड के जिज्ञासावश में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर काक भुशुण्डी ने दिए हैं जिस वजह से गरुड़ मोह मुक्त हुए ये प्रश्नोत्तर निश्चित ही जीवन का मार्गदर्शक हैं।
⏩प्रथम प्रश्न संवाद है :-
संसार में समस्त योनियों में कौन सा शरीर दुर्लभ है?
🔹प्रथमहिं कहहु नाथ मतिधीरा।
सबसे दुर्लभ कवन सरीरा।।
उत्तर में काक भुशुण्डी कहते हैं : मनुष्य शरीर सामान कोई शरीर नहीं, सभी जड़ व चेतन इसी शरीर की याचना करते हैं क्योंकि यही शरीर नरक स्वर्ग व मोक्ष की सीढ़ी है इसी से ज्ञान, वैराग्य, भक्ति की प्राप्ति होती है ऐसा शरीर पा कर भी जो लोग भगवान का ध्यान नहीं कर विलास विषयों में लगे रहते हैं उसका मानव देह पाना व्यर्थ है वे हाथ आई पारस मणि को फेक कर कांच के टुकड़े उठा लेते हैं।
🔹नर सम नहिं कवनिउ देहि।
जीव चराचर जाचत तेहि।।
🔹सो तनु धरि हरि भजहिं जे नर
होहिं विषयरत मंदमंदवर।।
⏩गरुड़ का दूसरा व तीसरा प्रश्न है :
सबसे बड़ा दुःख और सुख क्या है ?
🔹बड़ दुख कवन, कवन सुख भारी।
सोउ संछेपहि कहहु बिचारी।।
काक भुशुण्डी उत्तर देते हैं कि इस जगत में दरिद्रता जैसा कोई दुख नहीं और संत मिलन जैसा सुख नहीं है
🔹नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं।
संत मिलन सम सुख जग नाहीं।।
⏩गरुड़ की चौथी जिज्ञासा है :
की संत और असंत के स्वभाव में भेद क्या है?
🔹संत असंत मर्म तुम्ह जानहु।
तिन्ह कर सहज सुभाव बखानहु।।
उत्तर मिलता है कि हे पक्षीराज ! संतों का सहज स्वभाव है तन, मन व वचन से दूसरों का उपकार करना वे भोज के वृक्ष कि तरह दूसरे कि भलाई के लिए दुःख सह लेते हैं और वे सदा सबके लिए शुभकारी होते हैं, जबकि अभागे असंत तो हमेशा ही दूसरों को दुःख पहुँचाते हैं।
🔹पर उपकार वचन मन काया।
संत सहज सुभाउ खगराया।।
🔹संत सहहिं दुख पर हित लागी।
पर दुख हेतु असंत अभागी।।
साँप और चूहे की तरह असंत बिना किसी स्वार्थ के ही दूसरों का अहित करते हैं वे दूसरों कि सम्पदा का विनाश करके स्वयं नष्ट हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार ओले खेती को क्षति पंहुचा कर स्वयं भी नष्ट हो जाते हैं।
🔹खल, बिनु स्वारथ पर अपकारी।
अहि मूषक इव सुनु उरगारी।।
🔹पर सम्पदा बिनासि नसाहीं।
निमि ससि हति हिम उपल बिलाहीं।।
⏩गरुड़ ने पांचवाँ व छठा प्रश्न किया,
वेदों के अनुसार कौन सा पुण्य सबसे बड़ा और
कौन सा पाप घोर पाप है ?
🔹कवन पुण्य श्रुति विदित बिलासा।
कहहु कवन अघ परम कराला।।
उत्तर मिला, सबसे बड़ा पुण्य अहिंसा है और सबसे बड़ा पाप दूसरो कि निंदा है
🔹परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा।
पर निंदा सम अघ न गिरिसा।।
महादेव व गुरु का निंदक मेंढक का हजारों बार शरीर पा कर सिर्फ टर्र टर्र करता है तो ब्राह्मण का निंदक कौए कि योनि में काँव काँव करता है तो संत का उल्लू की, जिसके ज्ञान का सूर्य सदा के लिए अस्त हो जाता है पर जिसका मुख सबकी निंदा करता है वे चमगादड़ का जीवन पा कर सदा उल्टे टंगे रहते हैं।
⏩गरुड़ का सातवां और अंतिम प्रश्न है,
कृपया मानस रोगों को समझा कर बताइए।
उत्तर मिला की मोह अर्थात अज्ञान को सभी मानस रोगों की जड़ मानते हैं, जिससे सभी कष्टकरी दुःख उत्पन्न होते हैं वात, पित्त व कफ क्रमशः काम, क्रोध और लोभ हैं जिससे मनुष्य को प्राणघाती रोग होता है।
🔹मोह सकल व्यापिन्ह कर मुला।
विनह ते पुनि उपयही बहु सूना।।
🔹काम, वात, कफ, लोभ अपारा।
क्रोध पित्त नित छाती जारा।।
मोह असल में दाद, ईर्ष्या खुजली व कुटिलता कोढ़ है। इसी प्रकार अहंकार, दम्भः,क्रमशः डमरुआ, नेहरुआ रोग मत्सर और अविवेक दो प्रकार के ज्वर हैं मानस रोग असंख्य हैं और इनका उपचार पूरी श्रद्धा से श्रीराम भक्ति ही है।
🔹राम कृपा नासहिं सब रोगा। जौं एहि भाँति बनै संजोगा॥
सदगुर बैद बचन बिस्वासा।संजम यह न बिषय कै आसा॥
भावार्थ:-यदि श्री रामजी की कृपा से इस प्रकार का संयोग बन जाए तो ये सब रोग नष्ट हो जाएं। सद्गुरु रूपी वैद्य के वचन में विश्वास हो। विषयों की आशा न करें, यही संयम है ।
।। राम सिया राम सिया राम जय जय राम ।।
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